रामचरित मानस

210 Part

34 times read

1 Liked

चौपाई : * गयउँ उजेनी सुनु उरगारी। दीन मलीन दरिद्र दुखारी॥ गएँ काल कछु संपति पाई। तहँ पुनि करउँ संभु सेवकाई॥1॥ भावार्थ:-हे सर्पों के शत्रु गरुड़जी! सुनिए, मैं दीन, मलिन (उदास), ...

Chapter

×